बाग़ फूलों का, सावन में.. बिखर भी सकता है।
चाहते-जीस्त में.. यौवन संवर भी सकता है।
गलत ख्याल है ये, कि मंज़िल पे फिर मिलेंगे हम
सफर के बीच में.. मुसाफिर उतर भी सकता है।
फरेबी फितरत है, मिज़ाज़ भौरों सा
किसी भी सांस पे.. ये दिल मुकर भी सकता है।
ज़रा सा वक़्त लगेगा, मंज़र बदलने में
मरीज़-ऐ-इश्क़ का क्या.. कभी सुधर भी सकता है।
वो रुखसती का एक लम्हा कबसे अटका है
तेरी दुआ जो मिलती रहे.. गुज़र भी सकता है।।
चाहते-जीस्त में.. यौवन संवर भी सकता है।
गलत ख्याल है ये, कि मंज़िल पे फिर मिलेंगे हम
सफर के बीच में.. मुसाफिर उतर भी सकता है।
फरेबी फितरत है, मिज़ाज़ भौरों सा
किसी भी सांस पे.. ये दिल मुकर भी सकता है।
ज़रा सा वक़्त लगेगा, मंज़र बदलने में
मरीज़-ऐ-इश्क़ का क्या.. कभी सुधर भी सकता है।
वो रुखसती का एक लम्हा कबसे अटका है
तेरी दुआ जो मिलती रहे.. गुज़र भी सकता है।।